दिण अीका के सा ह का इितहास - M. K. Gandhi...श त क प...

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  • दि�ण अ�ीका के सा�ह का इितहास गांधीजी

    अनुवादक

    सोमे�र पुरोिहत

    पहली आवृि�, �ित २,०००, अग� १९६८

    मु�क और �काशक

    िववेक िजते� देसाई

    नवजीवन मु"णालय, अहमदाबाद – ३८० ०१४

    फोन: 079-27540635, 27542634

    E-mail: [email protected] | Website: www.navajivantrust.org

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    �काशक का िनवेदन

    गांधीजी की आOकथा के बाद िजसका नंबर आता है ऐसी उनकी दूसरी पु�क है दिJण अKीका के सLाMह

    का यह महWपूणX इितहास | यह इितहास उYोनें आOकथा की तरह मूल गुजराती मZ ही िलखा था | इस M\

    का केवल इतना ही मह] नही ंहै | इसमZ गांधीजी के च`रa-िनमाXण के सबसे मह]पूणX समय का तथा सLाMह

    की उनकी शोध के समय का इितहास भी dयं उYी ंकी लेखनी से िलखा eआ िमलता है | जब कभी गांधीजी

    के जीवन मZ अपनी आOा की गहराई मZ उतर कर सोचने-समझने का अवसर आता था, तब वे अकसर दिJण

    अKीका के अपने जीवन-काल की बातो ंऔर वहाँ के अनुभवो ंका iरण करते थे | इस M\ मZ इतना मह]पूणX

    इितहास भरा eआ है | यह इितहास, आOकथा की तरह ही, नवजीवन मZ साjािहक माला के kप मZ छपा था

    और बाद मZ पु�क के kप मZ �कािशत िकया गया था |

    mी वालजीभाई देसाई ने इस पु�क का अंMेजी अनुवाद िकया है | यह अनुवाद करते समय उYोनें इंिडयन

    ओपीिनयन की पुरानी फाइलZ देखकर इस इितहास को िकतनी ही तफसीलो ंकी जाँच की थी और ऐसा करते

    समय उYZ मूल मZ जहाँ-जहाँ संशोधन या प`रवधXन करना ज़kरी लगा वहाँ-वहाँ अंMेजी अनुवाद मZ उYोनें कर

    िलया था | यह अंMेजी अनुवाद गांधीजी dयं देख गये थे | उसमZ िकये गये सभी संशोधन या प`रवधXन इस िहqी

    अनुवाद मZ भी यथाrथान कर दीये गये हs |

    इस इितहास की िवशेष मह]पूणX तारीखZ अंत मZ यिद दी जाए तो अvािसयो ंके िलए वे उपयोगी िसw होगंी,

    ऐसा समझ कर वे तारीखZ अंत मZ प`रिशx –१ मZ दी गई हs |

    दूसरी एक बात की ओर पाठको ंका zान खीचंना हमZ ज़kरी लगता है | d. mी रावजीभाई मिणभाई पटेल इस

    सLाMह की लड़ाई के एक सैिनक थे | उYोनें उस समय के अपने संiरण गांधीजी की साधना नामक पु�क

    मZ िलखे है | उसकी ��ावना मZ उYोनें एक बात का उ}ेख िकया है | वह इस पु�क के पृx ३१७-१८ पर

    छपी उस घटना से स रखती है, िजसमZ बताया गया है िक पू क�ूरबा दिJण अKीका के सLाMह की

    लड़ाई मZ कैसे शरीक eई थी ं| अपनी उपयुX पु�क की ��ावना मZ mीरावजीभाई ने इस �कार िलखा है:

    “इस नई आवृि� मZ पू बा के अवसान के बाद एक � खड़ा eआ है, िजसके स मZ xता करना

    ज़kरी है |

    “दिJण अKीका के सLाMह की अंितम लड़ाई मZ पू. बा सिलत हो ंइसके िलए बापूजी ने जो �य

    िकया था, उसका वणXन मsने अपनी पु�क के ‘शुभ आरंभʼ नामक �करण मZ िकया है | इसी �करण

    के स मZ थोड़ी xता यहाँ करना ज़kरी है | दिJण अKीका के सLाMह का इितहास मZ बापूजी

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    ने इस बारेमZ कुछ अलग ढंग से िलखा है | वे िलखते हs िक सLाMह की लड़ाई मZ जब यो ंको शािमल

    करने की बात सोची गई तब मsने सबसे पहले mी छगनलाल गांधी की पी काशीबहन और mी मगनलाल

    गांधी की पी संतोकबहन से बात की और उYZ तैयार िकया; उसके बाद बा उसमZ शािमल eई | परु

    अपनी पु�क गांधीजी की साधना के �करण पु�क के kप मZ �कािशत करने से पहले मैनZ बापूजी

    के सामने पढ़े, उस समय बापूजी की iृित की एक भूल की ओर उनका zान खंचा और अपनी पु�क

    के �करण मZ विणXत घटना के सही होने का उYZ िवास िदलाया | बापूजी भी गहरे सोच मZ पड़ गये |

    उYोनें बाकी साJी के आधार पर इस िवषय मZ कोई िनणXय करना ठीक समझा | बा को बुलाकर बापूजी

    ने हमारी दोनो ंकी बात उनके सामने रखी | बाने कहा िक, ‘रावजीभाई की सारी बात सच है वह समूची

    घटना मुझे इतनी x याद है, मानो कल सवेरे ही घटी हो |ʼ इस पर बापूजी ने कहा, तब तो मेरी भूल

    eई है | दिJण अKीका के सLाMह की नई आवृि� मZ यह भूल सुधारनी होगी |”

    पाठक देखZगे िक mी रावजीभाई ने इस �संग के िवषय मZ अपनी गांधीजी की साधना नामक पु�क के ‘शुभ

    आरंभʼ �करण मZ जो कुछ िलखा है, वह गांधीजी ारा दिJण अKीका के सLाMह का इितहास मZ िलखी गई

    बात से िभ है | mी रावजीभाई के उस �करण का सत भाग इस M\ के अंत मZ प`रिशx –२ मZ उwतृ

    िकया गया है | उसके आधार पर इस M\ की नई आवृि� मZ सुधार कर लेने की बात गांधीजी ने सोची थी ं|

    परु उनके जीवन-काल मZ वह संभव नही ंeआ | इसिलए इस िनवेदन मZ उसका उ}ेख करके ही हमने

    सोष माना है | पाठको ं से हमारी िवनती है िक इस M\ मZ उपयुX घटना का वणXन पढ़ते समय वे mी

    रावजीभाई का उससे सत िचaण भी प`रिशx –२ मZ पढ़Z |

    गांधीजी के जीवन-कायX तथा सLाMह की शोध की िx से ऐितहािसक मह] रखने वाले इस M\ को िहqी मZ

    �कािशत करते eए हमZ आनq हो रहा है | आशा है, िवालयो ंऔर महािवालयो ंमZ तथा सामा पाठको ंमZ

    भी इसका हािदXक dागत होगा और केवल सािहLक िx से भी इस मौिलक इितहास-M\ का आदर होगा |

    १५-१-१९६८

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    �ा"ािवक

    दि�ण अKीका मZ िहqु�ािनयो ंकी सLाMह की लड़ाई आठ वषX तक चली | ‘सLाMहʼ श की शोध उसी

    लड़ाई के िसलिसले मZ eई और उसी लड़ाई के िलए इस श का �योग िकया गया था | बeत समय से मेरी यह

    इा थी िक उस लड़ाई का इितहास मs अपने हाथ से िलखँू | उसकी कुछ बातZ तो केवल मs ही िलख सकता ँ

    | कौनसी बात िकस हेतु से की गई थी, यह तो उस लड़ाई का संचालन करने वाला ही जान सकता है | और

    राजनीितक Jेa मZ यह �योग बड़े पैमाने पर दिJण अKीका मZ पहला ही eआ था; इसिलए उस सLाMह के

    िसwा के िवकास के बारेमZ लोग जानZ, यह िकसी भी समय आवक माना जाएगा |

    परु इस समय तो िहqु�ान मZ सLाMह का िवशाल Jेa है | िहqु�ान मZ वीरमगाम की जकात की छोटी सी

    लड़ाई से सLाMह का अिनवायX म आरंभ eआ है |

    वीरमगाम की जकात की लड़ाई का िनिमत था वढ़वाण का एक साधु-च`रत परोपकारी दरजी मोतीलाल िवलायत

    से लौट कर मs १९१५ मZ कािठयावाड़ (सौराx  ) जा रहा था | रेल के तीसरे दरजे मZ बैठा था | वढ़वाण ¢ेशन पर

    यह दरजी अपनी छोटीसी टुकड़ी के साथ मेरे पास आया था | वीरमगाम की थोड़ी बात करके उसने मुझसे

    कहा:

    “आप इस दुःख का कोई उपाय करZ | कािठयावाड़ मZ आपने ज¤ िलया है-यहाँ आप उसे सफल बनायZ|” उसकी

    आँखो ंमZ ढ़ता और क¥ना दोनो ंथी ं|

    मsने पूछा: “आप लोग जेल जाने को तैयार हs !”

    तुर उ�र िमला: हम फाँसी पर चढ़ने को भी तैयार हs !”

    मsने कहा: “मेरे िलए तो आपका िसफX जेल जाना ही काफ़ी है | लेिकन देखना, िवासघात न हो |”

    मोतीलाल ने कहा: “यह तो अनुभव ही बतायेगा |”

    मs राजकोट पeँचा | वहाँ इस स मZ अिधक जानकारी हािसल की | सरकार के साथ पa-¨वहार शुk िकया

    | बगसरा वगैरा rथानो ंपर मsने जो भाषण दीये, उनमZ वीरमगाम की जकात के बारेमZ आवक होने पर लोगो ं

    को सLाMह करने के िलए तैयार रहने की सूचना मsने की | सरकार की वफादार खुिफया पुिलस ने मेरे इन

    भाषणो ंको सरकारी द©र तक पeँचा िदया | पeँचाने वाले ¨ ने सरकार की सेवा के साथ अनजाने ही राx 

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    की भी सेवा की | अ मZ लॉडX चे«फोडX के साथ इस स मZ मेरी चचाX eई और उYोनें अपना िदया eआ

    वचन पाला | मs जानता ँ िक दूसरो ंने भी इस िवषय मZ �य िकया | परु मेरा यह ढ़ मत है िक इसमZ से

    सLाMह शुk होने की संभावना को देख कर ही वीरमगाम की जकात रद की गई |

    वीरमगाम की जकात की लड़ाई के बाद िगरिमट का कानून (इंिडयन इिमMेशन ए¬) आता है | इस कानून को

    रद कराने के िलए अनेक �य िकये गये थे | इस लड़ाई के स मZ अा खासा सावXजिनक आqोलन चला

    था | बई मZ eई सभा मZ िगरिमट की �था बq करने की अम तारीख ३१ मई, १९१७ िनित की गई थी |

    यह तारीख कैसे िनित eई, इसका इितहास यहाँ नही ंिदया जा सकता | िगरिमट कानून की लड़ाई के स

    मZ वाइसरॉय के पास पहला डे®ुटेशन (िशx-मंडल) मिहलाओं का गया था | उसमZ मु¯ �यास िकसका था,

    यह तो बताना ही होगा | वह �यास िचरiरणीया बहन जाईजी िपटीट का था | उस लड़ाई मZ भी केवल सLाMह

    की तैयारी से ही िवजय िमल गई | परु यह भेद याद रखने जैसा है िक इस लड़ाई के बारेमZ सावXजिनक

    आqोलन की ज़¥रत पड़ी थी | िगरिमट �था को रद करने की बात वीरमगाम की जकात रद करने से कही ं

    अिधक मह]पूणX थी | रौलट ए¬ के बाद भूलZ करने मZ लॉडX चे«फोडX ने कोई कसर नही ंरखी | इसके बावजूद

    मुझे आज भी ऐसा लगता है िक वे एक सयाने और समझदार वाइसरॉय थे | िसिवल सिवXस के rथायी अिधका`रयो ं

    के पंजे से आखर तक भला कौन सा वाइसरॉय बच सका है ?

    तीसरी लड़ाई च±ारण की थी | उसका िवiृत इितहास राजे�बाबू ने िलखा है | उसके िलए सLाMह करना

    पड़ा, केवल तैयारी काफ़ी सािबत नही ंeई | परु िवरोधी पJ का dाथX िकतना बड़ा था ? यह बात उ}ेखनीय

    है िक उस सLाMह मZ च±ारण के लोगो ंने खूब शा रखी | इसका साJी मs ँ िक सारे ही नेताओ ंने मन से,

    वचन से और काया से संपूणX शा रखी | यही कारण है िक च±ारण की यह सिदयो ंपुरानी बुराई छह मास मZ

    दूर हो गई |

    चौथी लड़ाई थी अहमदाबाद के िमल-मजदूरो ं की | उसका इितहास गुजरात न जानZ तो दूसरा कौन

    जानेगा ? उस लड़ाई मZ मजदूरो ंने िकतनी शा रखी ? नेताओ ंके बारेमZ तो मs भला ²ा कँ ? िफर भी उस

    िवजय को मsने दोषयु माना है; ²ोिंक मजदूरो ंकी टेक की रJा के िलए मsने जो उपवास िकया, वह िमल-

    मािलको ंपर दबाव डालने वाला था | उनके और मेरे बीच जो ³ेह था, उसके कारण मेरे उपवास का असर

    िमल-मािलको ंपर पड़े िबना रह ही नही ंसकता था | ऐसा होते eए भी उस लड़ाई की सीख तो x है | मजदूर

    शांित से अपनी टेक पर डटे रहते, तो उनकी िवजय अव होती और वे िमल-मािलको ंका मन जीत लेते |

    लेिकन वे मािलको ंका मन नही ंजीत सके, ²ोिंक वे मन, वचन, काया से िनद´ष-शांत रहे, ऐसा नही ंकहा जा

    सकता | पर इस लड़ाई मZ वे काया से शांत रहे, यह भी बeत बड़ी बात मानी जाएगी |

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    पाँचवी ंलड़ाई खेड़ा की थी | उसमZ सारे नेताओ ंने शुw सL की रJा की, ऐसा तो मs नही ंकह सकता | शांित

    की रJा ज़kर eई | िकसानो ंकी शांित कुछ हद तक अहमदाबाद के मजदूरो ंकी तरह केवल काियक शांित

    ही थी | उससे केवल मान और �ितµा की रJा eई | लोगो ंमZ भारी जागृित पैदा eई | परु खेड़ा ने पूरी तरह

    शांित का पाठ नही ंसीखा था; और अहमदाबाद के मजदूर शांित के शुw dkप को समझे नही ंथे | इससे

    रौलट ए¬ के सLाMह के समय लोगो ंको कx उठाना पड़ा, मुझे अपनी िहमालय जैसी बड़ी भूल dीकार

    करनी पड़ी और उपवास करना तथा दूसरो ंसे करवाना पड़ा |

    छठी लड़ाई थी रौलट ए¬ की | उसमZ हमारे भीतर के दोष बाहर उभर आये | परु हमारा मूल आधार स¶ा

    था | सारे ही दोष हमने dीकार िकये; उनके िलए �याि� भी िकया | रौलट ए¬ का अमल कभी नही ंहो सका

    और अ मZ वह काला कानून रद भी कर िदया गया | इस लड़ाई ने हमZ बeत बड़ा सबक िसखाया |

    सातवी ंलड़ाई थी खलाफत की, पंजाब के अLाचारो ंकी और dरा �ाj करने की | यह लड़ाई आज भी

    चल रही है | मेरा यह ढ़ िवास है िक इसमZ एक भी सLाMही यिद अ तक डटा रहे, तो हमारी िवजय िनित

    है |

    परु आज जो लड़ाई चल रही है, वह तो महाभारत के जैसी है | इसकी तैयारी अिना से कैसे eई, इस बात

    का म मs ऊपर बता चुका ँ | वीरमगाम की जकात की लड़ाई के समय मुझे इस बात का पता नही ंथा िक

    दूसरी लड़ाइयाँ भी आगे चल कर मुझे लड़नी होगंी | और वीरमगाम की लड़ाई के बारेमZ भी दिJण अKीका मZ

    मs कुछ नही ंजानता था | सLाMह की खूबी यही है | वह dयं हमारे पास चला आता है; हमZ उसे खोजने नही ं

    जाना पड़ता | यह गुण सLाMह के िसwा मZ ही िनिहत है | िजसमZ कुछ गुj नही ंहै, िजसमZ कोई चालाकी की

    बात नही ं है और िजसमZ असL तो हो ही नही ंसकता, ऐसा धमXयुw अनायास ही आता है; और धम¸ (धमX-

    परायण) मनु¹ उसके िलए सदा तैयार ही रहता है | िजस युw की योजना पहले से करनी पड़े, वह धमXयुw नही ं

    है | धमXयुw की योजना करने वाला और उसे चलाने वाला ईर है | वह युw ईर के नाम पर ही चल सकता है

    और जब सLाMही के सारे आधार ढीले पड़ जाते हs, वह सवXथा िनबXल हो जाता है और उसके चारो ंओर घोर

    अकार फैल जाता है, तभी ईर उसकी सहायता करता है | मनु¹ जब राजकण से भी अपने को नीचा मानता

    है तभी ईर उसकी सहायता करता है | िनबXल को ही राम बल देता है |

    इस सL का अनुभव तो अभी हमZ होना बाकी है | इसिलए मs मानता ँ िक दिJण अKीका के सLाMह का

    इितहास हमारे िलए सहायक िसw होगा |

    पाठक देखZगे िक वतXमान लड़ाई मZ आज तक हमZ जो-जो अनुभव eए हs, उनसे िमलते-जुलते अनुभव दिJण

    अKीका के सLाMह मZ eए थे | दिJण अKीका के सLाMह का इितहास हमZ यह भी बतायेगा िक अभी तक

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    हमारी इस लड़ाई मZ िनराशा का एक भी कारण पैदा नही ंeआ है | िवजय �ाj करने के िलए इतना ही आवक

    है िक हम अपनी योजना पर ढ़ता से डटे रहZ |

    यह ��ावना मs जू मZ िलख रहा ँ | इस इितहास के �थम ३. �करण मsने यरवडा जेल मZ िलखे थे | मs बोलता

    गया था और भाई इqुलाल यािºक िलखते गये थे | बाकी रहे �करण मs आगे िलखने की आशा रखता ँ | जेल

    मZ मेरे पास आधारो ंके िलए कोई सqभX-M\ नही ंथे | यहाँ भी मs ऐसी पु�कZ एकa करने की इा नही ंरखता

    | »ोरेवार िव�ृत इितहास िलखने का न तो मेरे पास समय है, न इसके िलए मुझमZ उ¼ाह या इा है | यह

    इितहास िलखने मZ मेरा उ½े इतना ही है िक हमारी वतXमान लड़ाई मZ यह सहायक िसw हो और कोई फुरसत

    वाला सािहL-िवलासी दिJण अKीका के सLाMह का »ोरेवार इितहास िलखे, तो उसके कायX मZ मेरा यह

    �य मागXदशXक बन सके | यिप यह पु�क मs िबना िकसी आधार के िलख रहा ँ, िफर भी मेरी िवनती है िक

    कोई पाठक यह न समझे िक इसमZ एक भी घटना अिनित है या एक भी rथान पर अितशयो है |

    जू, बुधवार,

    सं, १९८०, फागुन वदी १३,

    २ अ�ैल, १९२४

    पाठक यह जानते हs िक उपवास के कारण और अ कारणो ंसे मs दिJण अKीका के सLाMह का इितहास

    आगे िलख नही ंपाया था | नवजीवन के इस अंक से मs िफर यह इितहास िलखना आर¾ करता ँ | आशा है

    िक अब मs इसे िबना िकसी िव¿-बाधा के पूरा कर सकँूगा |

    इस इितहास के iरणो ंसे मs देखता ँ िक हमारी आज की rथित मZ ऐसी एक भी बात नही ंहै, िजसका छोटे

    पैमाने पर मुझे दिJण अKीका मZ अनुभव न eआ हो | सLाMह के आर¾ मZ यही उ¼ाह, यही एकता और

    यही आMह वहाँ देखने को िमला था; मz मZ यही िनराशा, यही अ¥िच और यही आपसी झगड़े और ई¹ाX-ेष;

    और िफर भी मुÀीभर लोगो ंमZ अिवचल mwा, ढ़ता, Lाग और सिहÁुता के दशXन होते थे | ऐसी ही अनेक

    �कार की सोची-अनसोची मुसीबतZ वहाँ भी सामने आई थी ं| िहqु�ान की लड़ाई का अम काल अभी बाकी

    है | उस अम काल मZ मs यहाँ भी वही rथित देखने की आशा रखता ँ, िजसका अनुभव मs दिJण अKीका

    मZ कर चुका ँ | दिJण अKीका की लड़ाई का अम काल पाठक अब आगे देखZगे | उसमZ यह बताया जाएगा

    िक िकस �कार हमZ िबन-माँगी मदद िमल गई, कैसे िहqु�ानी लोगो ंमZ अनायास उ¼ाह आ गया और अ

    मZ िहqु�ािनयो ंकी संपूणX िवजय उस लड़ाई मZ कैसे eई |

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    मेरा यह ढ़ िवास है िक जैसा दिJण अKीका मZ eआ था वैसा ही यहाँ भी होगा; ²ोिंक तपÂा पर, सL पर,

    अिहंसा पर मेरी अटल और अिवचल mwा है | मेरा अJरश: यह िवास है िक सL का पालन करने वाले मनु¹

    के सामने सारे जगत की स±ि� आकर खड़ी हो जाती है और वह ईर का साJाÃार करता है | अिहंसा के

    िनकट वैरभाव नही ंरह सकता – इस वचन को भी मs अJरश: सL मानता ँ | मs इस सूa का उपासक ँ िक

    जो लोग दुःख सहन करते हs, उनके िलए इस दुिनया मZ कुछ भी अस¾व नही ंहै | िकतने ही सेवको ंमZ मs इन

    तीनो ंबातो ंका सुमेल और समÄय सधा eआ देखता ँ | उनकी साधना कभी िनÅल हो ही नही ंसकती, ऐसा

    मेरा िनरपवाद अनुभव है |

    लेिकन कोई कहेगा िक दिJण अKीका मZ िमली स±ूणX िवजय का अथX तो इतना ही है िक िहqु�ानी वहाँ जैसे

    थे वैसे ही रह गये | ऐसा कहने वाला ¨ अºानी कहा जाएगा | अगर दिJण अKीका मZ सLाMह की लड़ाई

    न लड़ी गई होती | तो आज न केवल दिJण अKीका से बÆ सारे िÇिटश उपिनवेशो ंसे िहqु�ािनयो ंके पैर

    उखड़ जाते और उनकी खोज-खबर लेने वाला भी कोई न होता | लेिकन यह उ�र पयाXj या संतोषकारक नही ं

    माना जाएगा | यह तकX भी िकया जा सकता है िक यिद सLाMह न िकया गया होता और यथासंभव समझाइश

    से काम लेकर संतोष मान िलया गया होता, तो आज जो rथित िहqु�ािनयो ंकी दिJण अKीका मZ है वह न

    eई होती | यिप इस तकX मZ कोई सार नही ंहै, िफर भी जहाँ केवल तकÈ और अनुमानो ंके ही �योग हो,ं वहाँ

    यह कहना किठन होता है िक िकसके तकX अथवा िकसके अनुमान उ�म हs | अनुमान लगाने का सबको

    अिधकार है | परु िजसका उ�र न िदया जा सके ऐसी बात तो यह है िक िजस श से जो व�ु �ाj की

    जाती है, उसी श से उस व�ु की रJा की जा सकती है |

    ‘काबे१ अजुXन लंूिटयो वही धनुष वही बाण |ʼ

    िजस अजुXन ने िशवजी को परािजत िकया, िजसने कौरवो ंका सारा मद उतार िदया, वही अजुXन जब कृÁkपी

    सारिथ से रिहत हो गया तब वह लुटेरो ंकी एक टोली को अपने गांडीव धनुष से हरा नही ं सका ! यही बात

    दिJण अKीका के िहqु�ािनयो ंपर भी च`रताथX होती है | अभी भी वे संMाम मZ जूझ रहे हs | परु िजस सLाMह

    के बल पर वे िवजयी eए थे, उस श को यिद वे खो बैठे हो,ं तो अंत मZ बाजी हार जायZगे | सLाMह उनका

    सारिथ था; और वही सारिथ लड़ाई मZ उनकी सहायता कर सकता है |

    नवजीवन, ५-७-१९२५ मो. क. गांधी _________________

    १. लुटेरो ंने

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    अनु'मिणका

    �काशक का िनवेदन

    �ा�ािवक

    �थम खंड

    १. भूगोल

    २. इितहास

    ३. दिJण अKीका मZ िहqु�ािनयो ंका आगमन

    ४. मुसीबतो ंका िसंहावलोकन – १

    ५. मुसीबतो ंका िसंहावलोकन – २

    ६. िहqु�ािनयो ंने ²ा िकया ?

    ७. िहqु�ािनयो ंने ²ा िकया ? (मश:)

    ८. िहqु�ािनयो ंने ²ा िकया ? (मश:) इंÊsड मZ कायX

    ९. बोअर-युw

    १०. युw के बाद

    ११. सËनता का बदला: खूनी कानून

    १२. सLाMह का ज¤

    १३. सLाMह बनाम ‘पैिसव रेिज़¢ेÌʼ

    १४. इंÊsड मZ �ितिनिध-मंडल

    १५. व राजनीित अथवा Jिणक हषX

    १६. अहमद मुहद काछिलया

    १७. पहली फूट

    १८. �थम सLाMही क़ैदी

    १९. इंिडयन ओपीिनयन

    २०. िगर©ा`रयो ंका ताँता

    २१. पहला समझौता

    २२. समझौते का िवरोध और मुझ पर हमला

    २३. गोरे सहायक

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    २४. भीतर की और Îादा मुसीबतZ

    ि+तीय ख-

    १. जनरल iट्स का िवासघात (?)

    २. लड़ाई की पुनरावृि�

    ३. ऐक परवानो ंकी होली

    ४. कौम पर नई बात उठाने का आJेप

    ५. सोराबजी शापुरजी अडाजिणया

    ६. सेठ दाऊद मुहद आिद का लड़ाई मZ �वेश

    ७. देश-िनकाला

    ८. दूसरा �ितिनिध-मंडल

    ९. टॉТॉय फामX – १

    १०. टॉТॉय फामX – २

    ११. टॉТॉय फामX – ३

    १२. गोखले की याaा – १

    १३. गोखले की याaा – २

    १४. वचन-भंग

    १५. जब िववाह िववाह नही ंमाना गया

    १६. याँ जेल मZ

    १७. मजदूरो ंका �वाह

    १८. मािलको ंसे मुलाकात और उसके बाद

    १९. ट  ाÌवाल मZ �वेश – १

    २०. ट  ाÌवाल मZ �वेश – २

    २१. सभी लोग जेल मZ

    २२. कसौटी

    २३. अ का आरंभ

    २४. �ाथिमक समझौता

    २५. पaो ंका आदान-�दान

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    २६. लड़ाई का अ

    उपसंहार

    प`रिशx – १ : सLाMह की लड़ाई के इितहास की मु¯ तारीखZ और घटनायZ

    प`रिशx – २ : पूितX

    सूची

    िच/सूिच

    * लड़ाई की शु¥आत मZ

    * िफिनÒवासी

    * टॉТॉय फामX के पहले िनवासी

    * िवचाराधीन

    * गोखलेजी

    * ट  ाÌवाल की कूच

    * लड़ाई के अंत मZ

    * इंÊsड जाने से पहले

    * आिKका से िबदा होते

    नकशा

    िहंदु�ान के ¨ापार मागX

    िÇिटश साउथ आिKका

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    �थम खंड

    १. भूगोल

    अ�ीका संसार के बड़े से बड़े महाीपो ंमZ से एक है | िहqु�ान भी एक महाीप के जैसा देश माना जाता है

    | परु अKीका के भूभाग मZ से केवल Jेaफल की िx से चार या पाँच, िहqु�ान बन सकते हs | दिJण

    अKीका अKीका के ठेठ दिJण िवभाग मZ rथत है | िहqु�ान के समान अKीका भी एक �ायीप ही है |

    इसिलए दिJण अKीका का बड़ा भाग समु" से िघरा eआ है | अKीका के बारेमZ सामात: यह माना जाता है

    िक वहाँ Îादा से Îादा गरमी पड़ती है; और एक िx से यह बात सच है | भूमz-रेखा अKीका के मz से

    होकर जाती है और इस रेखा के आसपास के देशो ंमZ पड़ने वाली गरमी की कÓना िहqु�ान के लोगो ंको

    नही ंआ सकती | ठेठ िहqु�ान के दिJण मZ िजस गरमी का अनुभव हम करते हs, उससे हमZ भूमz-रेखा के

    आसपास के �देशो ंकी गरमी की थोड़ी कÓना हो सकती है | परु दिJण अKीका मZ ऐसा कुछ नही ंहै,

    ²ोिंक वह भूभाग भूमz-रेखा से बeत दूर है | उसके बeत बड़े भाग की आबहवा इतनी सुqर और ऐसी

    समशीतोÁ है िक वहाँ यूरोप की जाितयाँ आराम से रह-बस सकती हs, जब िक िहqु�ान मZ बसना उनके िलए

    लगभग असंभव है | िफर, दिJण अKीका मZ ितÔत अथवा काÕीर जैसे बड़े ऊँचे �देश तो हs, परु वे ितÔत

    अथवा काÕीर की तरह दस से चौदह हजार फुट ऊँचे नही ंहs | इसिलए वहाँ की आबवहा सूखी और सहन हो

    सके इतनी ठंडी रहती है | यही कारण है िक दिJण अKीका के कुछ भाग Jय से पीिड़त रोिगयो ंके िलए अित

    उ�म माने जाते हs | ऐसे भागो ंमZ से एक भाग दिJण अKीका की सुवणXपुरी जोहािनसबगX है | ज़मीन के िजस

    टुकड़े पर जोहािनसबगX शहर बसा eआ है, वह आज से ५० वषX पहले िबलकुल वीरान और सूखे घास वाला

    �देश था | परु जब वहाँ सोने की खदानो ंकी खोज eई तब मानो जादू के �ताप से टपाटप घर बाँधे जाने लगे;

    और आज तो वहाँ असं¯ िवशाल सुशोिभत �ासाद खड़े हो गये हs | वहाँ के धनी लोगो ंने dयं पैसा खचX करके

    दिJण अKीका के उपजाऊ भागो ंसे और यूरोप से भी, एक-एक पेड़ के प�ह-प�ह kपये देकर, पेड मँगाये

    हs और वहाँ लगाये हs | िपछला इितहास न जानने वाले याaी को आज वहाँ जाने पर ऐसा ही लगेगा िक ये पेड़

    उस शहर मZ जमानो ंसे चले आ रहे होगें |

    दिJण अKीका के सारे िवभागो ंका वणXन मs यहाँ नही ंदेना चाहता | िजन िवभागो ंका हमारे िवषय के साथ

    स है, उYी ंका थोड़ा वणXन मs यहाँ देता ँ | दिJण अKीका मZ दो eकूमतZ हs : (१) िÇिटश, और (२) पुतXगाली

    | पुतXगाली भाग डेलागोआ बे कहा जाता है | िहqु�ान से जाने वाले जहाजो ंके िलए वह दिJण अKीका का

    पहला बqरगाह कहा जाएगा | वहाँ से दिJण की ओर आगे बढ़े तो पहला िÇिटश उपिनवेश नेटाल आता है |

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    उसका बqरगाह पोटX नेटाल कहलाता है | परु हम उसे डरबन के नाम से जानते हs और दिJण अKीका मZ

    भी सामात: वह इसी नाम से जाना जाता है | वह नेटाल का सबसे बड़ा शहर है | पीटर-मे`र¼बगX नेटाल की

    राजधानी है | वह डरबन से अqर के भाग मZ लगभग ६० मील के अर पर समु" की सतह से लगभग दो

    हजार फुट की ऊँचाई पर बसी eई है | डरबन की आबहवा कुछ हद तक बई की आबवहा से िमलती-जुलती

    मानी जाएगी | बई की अपेJा वहाँ की हवा मZ ठंडक ज़kर कुछ अिधक है | नेटाल को छोड़ कर आगे जाने

    पर ट  ाÌवाल आता है | ट  ाÌवाल की धरती आज दुिनया को अिधक से अिधक सोना देती है | कुछ ही वषX पूवX

    वहाँ हीरे की खदानZ भी िमली हs, िजनमZ से एक मZ संसार का सबसे बड़ा हीरा िनकला है | संसार के इस सबसे

    बड़े हीरे का नाम खदान के मािलक Öीनन के नाम पर रखा गया है | यह Öीनन हीरा कहा जाता है | इस हीरे

    का वजन ३००० कैरेट अथाXत् १(१/३) एवोडुXपोइज पौडं है, जब िक कोिहनूर हीरे का आज का वजन लगभग १००

    कैरेट है और kस के ताज के हीरे ‘ऑलZफʼ का वजन लगभग २०० कैरेट है |

    यिप जोहािनसबगX सुवणXपुरी है और हीरो ंकी खदानZ भी उसके िनकट मZ ही है, िफर भी वह ट  ाÌवाल की

    राजधानी नही ंहै | ट  ाÌवाल की राजधानी है ि�टो`रया | वह जोहािनसबगX से ३६ मील दूर है और उसमZ मु¯त:

    शासक और राजनीितक लोग तथा उनसे सत लोग ही रहते हs | इस कारण से ि�टो`रया का वातावरण

    तुलना मZ शा कहा जाएगा, जब िक जोहािनसबगX का वातावरण अितशय अशा माना जाएगा | िजस �कार

    िहqु�ान के िकसी छोटे से गाँव से या किहये िक छोटे से शहर से बई पeँचते ही वहाँ की दौड़धूप, धांधली

    और अशा से आदमी घबरा उठता है, उसी �कार ि�टो`रया से जाने वाला आदमी जोहािनसबगX के से

    घबरा उठता है | जोहािनसबगX के नाग`रक चलते नही ं परु दौड़ते-से मालूम होते हs, ऐसा कहZ तो कोई

    अितशयो नही ंहोगी | िकसी के पास िकसी की ओर देखने िजतना भी समय नही ंहोता; सब कोई इसी िवचार

    मZ डूबे eए मालूम होते हs िक कम से कम समय मZ Îादा से Îादा धन कैसे कमाया जा सकता है ! ट  ाÌवाल

    को छोड़ कर यिद अिधक भीतरी �देश मZ ही पिम की ओर हम जायZ, तो ऑरZज Kी ¢ेट अथवा ऑरZ िजया

    का उपिनवेश आता है | उसकी राजधानी का नाम Ùूमफोटंीन है | वह अL शा और छोटासा शहर है |

    ऑरZ िजया मZ ट  ाÌवाल की तरह सोने और हीरे की खदानZ नही ंहs | उस उपिनवेश मZ थोड़े घंटो ंकी रेलयाa करने

    के बाद ही हम केप कॉलोनी की सीमा पर पeँच जाते हs | केप कॉलोनी दिJण अKीका का सबसे बड़ा उपिनवेश

    है | उसकी राजधानी केप टाउन के नाम से पुकारी जाती है, जो केप कॉलोनी का सबसे बड़ा बqरगाह है | वह

    कैप ऑफ गुड होप (‘शुभ आशा का अरीपʼ) नामक अरीप पर rथत है | उसका यह नाम पुतXगाल के राजा

    जॉन ने रखा था, ²ोिंक वाÚो डी गामा ारा उसकी खोज होने पर राजा के मन मZ यह आशा बंधी थी िक अब

    उसकी �जा िहqु�ान पeँचने का एक नया और अिधक सरल मागX �ाj कर सकेगी | िहqु�ान उस युग के

    समु"ी अिभयानो ंका चरम लÛ माना जाता था |

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    ये चार मु¯ िÇिटश उपिनवेश हs | इनके िसवा िÇिटश eकूमत के ‘संरJणʼ मZ कुछ ऐसे �देश हs, जहाँ दिJण

    अKीका के-यूरोिपयनो ंके आगमन से पहले के – मूल िनवासी रहते हs |

    दिJण अKीका का मु¯ उोग खेती ही माना जाएगा | खेती के िलए वह देश उ�म है | उसके कुछ भाग तो

    अL उपजाऊ और सुqर हs | अनाजो ंमZ अिधक से अिधक माaा मZ और आसानी से पकने वाला अनाज

    मकई है; और मकई दिJण अKीका के हबशी लोगो ंका मु¯ आहार है | कुछ भागो ंमZ गेँ भी पैदा होता है |

    फलो ंके िलए तो दिJण अKीका बड़ा िव¯ात है | नेटाल मZ अनेक जाित के और बeत सुqर तथा सरस केले,

    पपीते और अनास पकते हs और वह भी इतनी बeतायत से िक गरीब से गरीब आदमी को भी वे िमल सकते

    हs | नेटाल मZ और अ उपिनवेशो ंमZ नारंगी, संतरे, ‘पीचʼ (आडू) और ‘एि�कोटʼ (जरदालू) इतनी बड़ी माaा मZ

    पैदा होते हs की हजारो ंलोग मामूली-सी मेहनत करZ तो भी गाँवो ंमZ वे बग़ैर पैसे के ये फल पा सकते हs | केप

    कॉलोनी तो अंगूरो ंकी और ‘पÜʼ (एक जाित का बड़ा बेर) की ही भूिम है | वहाँ के जैसे सरस अंगूर दूसरे

    उपिनवेशो ंमZ शायद ही होते हो | मौसम मZ उनकी क़ीमत इतनी कम होती है िक गरीब आदमी भी भरपेट अंगूर

    खा सकता है | और यह तो कभी हो ही नही ंसकता िक जहाँ-जहाँ िहqु�ािनयो ंकी आबादी हो वहाँ आम के

    पेड़ न हो ं| िहqु�ािनयो ंने दिJण अKीका मZ आम के पेड़ लगाये | इसका नतीजा यह है िक आज वहाँ काफ़ी

    माaा मZ आम भी खाने को िमल सकते हs | उनकी कुछ जाितयाँ ज़kर बई की हाफुस-पायरी जैसी जाितयो ं

    से होड़ लगा सकती हs | साग-भाजी भी उस उपजाऊ भूिम मZ खूब पैदा होती है; और ऐसा कहा जा सकता है

    िक शौकीन िहqु�ािनयो ंने वहाँ लगभग सभी तरह की साग-भाजी पैदा की है |

    पशु भी वहाँ काफ़ी सं¯ा मZ हs, ऐसा कहा जा सकता है | वहाँ के गाय-बैल िहqु�ान के गाय-बैलो ंसे Îादा

    क½ावर और Îादा ताकतवर होते हs | गौरJा का दावा करने वाले िहqु�ान मZ असं¯ गायो ंऔर बैलो ंको

    िहqु�ान के लोगो ंकी तरह ही दुबले-पतले और कमजोर देखकर मs लËत eआ ँ और मेरा Ýदय अनेक

    बार रोया है | दिJण अKीका मZ मsने कभी दुबXल गायZ या बैल देखे हो ंऐसा मुझे याद नही ंहै, यिप मs सारे भागो ं

    मZ लगभग अपनी आँखZ खुली रखकर घूमा ँ |

    कुदरत ने दूसरी कई देनZ तो इस भूिम को दी ही हs, परु सृिx-सौqयX से इस भूिम को सुशोिभत करने मZ भी

    उसने कोई कमी नही ंरखी है | डरबन का बeत सुqर माना जाता है | परु केप कॉलोनी उससे कही ं

    अिधक सुqर है | केप टाउन ‘टेबल माउÞेनʼ नामक न तो अिधक नीचे और न अिधक ऊँचे पहाड़ की तलेटी

    मZ बसा eआ है | दिJण अKीका को पूजने वाली एक िवदुषी मिहला उस पहाड़ के िवषय मZ िलखी अपनी

    किवता मZ कहती है िक िजस अलौिककता का अनुभव मsने टेबल माउÞेन मZ िकया है वैसा अ िकसी पहाड़

    मZ मsने अनुभव नही ंिकया | इस कथन मZ अितशयो हो सकती है | मs मानता ँ िक इसमZ अितशयो है |

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    परु उस िवदुषी मिहला की एक बात मेरे गले उतर गई है | वह कहती है िक टेबल माउÞेन केप टाउन के

    िनवािसयो ंके िमa का काम करता है | बeत ऊँचा न होने के कारण वह पहाड़ भयंकर नही ंलगता | लोगो ंको

    दूर से ही उसका पूजन नही ंकरना पड़ता, बÆ वे पहाड़ पर ही मकान बनवाकर वहाँ रहते हs; और ठीक

    समु"-तट पर होने के कारण समु" अपने d जल से उसका पाद-पूजन करता है तथा उसका चरणामृत

    पीता है | बालक और बूढ़े, याँ और पु¥ष सब िनभXय हो कर लगभग सारे पहाड़ मZ घूम सकते हs और हजारो ं

    नाग`रको ंकी आवाजो ंसे सारा का सारा पहाड़ �ितिदन गँूज उठता है | िवशाल वृJ और सुगंिधत तथा रंग-िबरंगे

    फूल समूचे पहाड़ को इतना अिधक सँवार और सजा देते हs िक मनु¹ को उसकी सुषमा और शोभा देखने और

    उसमZ घुमने से कभी तृj ही नही ंहोती |

    दिJण अKीका मZ इतनी बड़ी निदयाँ नही ंहs िजनकी तुलना हमारी गंगा-यमुना के साथ की जा सके | जो थोड़ी

    निदयाँ वहाँ हs, वे हमारे यहाँ की निदयो ंकी तुलना मZ छोटी हs | उस देश मZ अनेक rथानो ंपर निदयो ंका पानी

    पeँचता ही नही ं| ऊँचे �देशो ंमZ निदयो ंसे नहरZ भी कैसे ले जाई जाएँ ? और जहाँ समु" जैसी िवशाल निदयाँ न

    हो ंवहाँ नहरZ हो भी कैसे सकती हs ? दिJण अKीका मZ जहाँ-जहाँ पानी की कुदरती तंगी है वहाँ पाताल-कुएँ

    खोदे जाते हs और उनमZ से खेतो ंकी िसंचाई की जा सके इतना पानी पवन-चßयो ंऔर भाफ के इंिजनो ंारा

    खीचंा जाता है | खेती को वहाँ की सरकार की ओर से काफ़ी मदद िमलती है | िकसानो ंके सलाह देने और

    उनका मागXदशXन करने के िलए सरकार अपने कृिषशायो ंको उनके पास भेजती है | अनेक rथानो ंपर

    सरकार िकसानो ंके लाभ के िलए खेती के िविवध �योग करती है | वह नमूने के फामX चलाती है, िकसानो ंको

    अे पशुओ ंऔर अे बीज की सुिवधा देती है, बeत ही थोड़ी क़ीमत मZ पाताल-कुएँ खुदवा देती है और

    िक�ो ंमZ उसका मूà चुकाने की सुिवधा िकसानो ंको देती है | इसी �कार सरकार खेतो ंके आसपास लोहे के

    कंटीले तारो ंकी बाड़ भी करा देती है |

    दिJण अKीका भूमz-रेखा के दिJण मZ है और िहqु�ान उस रेखा के उ�र मZ है, इसिलए वहाँ का समूचा

    वातावरण – जलवायु िहqु�ािनयो ंको उलटा मालूम होता है | वहाँ की ॠतुएँ भी िहqु�ान से उलटी होती हs |

    उदाहरण के िलए, हमारे देश मZ जब गरमी का मौसम होता है तब वहाँ सरदी का मौसम रहता है | बरसात का

    कोई िनित िनयम वहाँ है, ऐसा नही ंकहा जा सकता | िकसी भी समय बरसात वहाँ िगर सकती है | सामात:

    २० इंच से अिधक बरसात वहाँ नही ंहोती |

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    २. इितहास

    अ�ीका के भूगोल पर िxपात करते eए पहले �करण मZ हमने िजन भौगोिलक िवभागो ंकी संिJj चचाX की,

    वे �ाचीन काल से चले आ रहे हs ऐसा पाठक न मान लZ | अL �ाचीन काल मZ दिJण अKीका के िनवासी

    कौन लोग रहे होगें, यह िनित kप से पता नही ंलगाया जा सका है | यूरोिपयन लोग दिJण अKीका मZ आकर

    बसे उस समय वहाँ हबशी रहते थे | ऐसा माना जाता है िक अमे`रका मZ िजस समय गुलामी के अLाचार का

    बोलबाला था, उस समय अमे`रका से भागकर कुछ हबशी दिJण अKीका मZ आकर बस गये थे | वे लोग अलग-

    अलग जाितयो ंके नाम से पहचाने जाते हs – जैसे, जूलू, dाज़ी, बसूटो, बेकवाना आिद | उनकी भाषायZ भी अलग

    अलग हs | ये हबशी ही दिJण अKीका के मूल िनवासी माने जाते हs | परु दिJण अKीका इतना बड़ा देश है

    िक आज हबिशयो ंकी िजतनी आबादी वहाँ है उससे बीस या तीस गुनी आबादी उसमZ आसानी से समा सकती

    है | रेल ारा डरबन से केप टाउन जाने के िलए लगभग १८०० मील की याaा करनी होती है | समु"ी मागX से भी

    दोनो ंके बीच का अंतर १००० मील से कम नही ंहै | पहले �करण मZ बताये गये चार उपिनवेशो ंका कुल Jेaफल

    ४७३००० वगXमील है |

    इस िवशाल भूभाग मZ हबिशयो ंकी आबादी १९१४ मZ लगभग ५० लाख और गोरो ंकी आबादी लगभग १३ लाख

    थी | जूलू जाित के लोग हबिशयो ंमZ Îादा से Îादा क½ावर और सुqर कहे जा सकते हs | ‘सुqरʼ िवशेषण का

    उपयोग मsने हबिशयो ंके बारेमZ जान-बूझकर िकया है | गोरी चमड़ी और नुकीली नाक को हम सुqरता का

    लJण मानते हs | यिद इस अिवास को हम घड़ी भर एक ओर रख दZ , तो हमZ ऐसा नही ंलगेगा िक जूलू को

    गढ़ने मZ Çâा ने कोई कसर रहने दी है | याँ और पु¥ष दोनो ंऊँचे और ऊँचाई के अनुपात मZ िवशाल छाती

    वाले होते हs | उनके संपूणX शरीर के ³ायु सु¨वrथत और बeत बलवान होते हs | उनकी िपंडिलयाँ और भुजायZ

    माँसल और सदा गोलाकार ही िदखाई देती हs | कोई, ी या पु¥ष झुक कर या कूबड़ िनकाल कर शायद ही

    चलता देखा जाता है | उनके होठ ज़kर बड़े और मोटे होते हs; परु वे सारे शरीर के आकार के अनुपात मZ

    होते हs, इसिलए मs तो नही ंकँगा िक वे जरा भी बेडौल लगते हs | आँखZ उनकी गोल और तेजdी होती हs | नाक

    चपटी और बड़े मँुह पर शोभा दे इतनी बड़ी होती है और उनके िसर के घंुघराले बाल उनकी सीसम जैसी काली

    और चमकीली चमड़ी पर बड़े सुशोिभत हो उठते हs | अगर हम िकसी जूलू से पूछZ िक दिJण अKीका मZ बसने

    वाली जाितयो ंमZ सबसे सुqर वह िकसे मानता है, तो वह अपनी जाित के िलए ही ऐसा दावा करेगा | और उसके

    इस दावे को मs जरा भी अनुिचत नही ंमानँूगा | आज यूरोप मZ सैãो और दूसरे पहलवान अपने शािगद´ की

    भुजाओं, हाथ आिद अवयवो ंके िवकास के िलए जो �य करते हs, वैसा कोई �य िकये िबना कुदरती kप मZ

    ही इस जाित के अवयव मजबूत और सुडौल िदखाई देते हs | भूमz-रेखा के नजदीक रहने वाली जाितयो ंकी

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    चमड़ी काली ही हो, यह कुदरत का िनयम है | और कुदरत जो-जो आकार गढ़ती है उसमZ सौqयX ही होता है

    ऐसा हम यिद मानZ, तो सौqयX के िवषय मZ हमारे संकुिचत और एकदेशीय िवचारो ंसे हम मु हो जाएँगे |

    इतना ही नही,ं परु िहqु�ान मZ हमZ अपनी ही चमड़ी थोड़ी काली होने पर जो अनुिचत लËा और घृणा

    मालूम होती है, उससे भी हम मु हो जाएँगे |

    ये हबशी घास-िमäी के बने गोल कूबो ं(झोपंिड़यो)ं मZ रहते हs | हर कूबे की एक ही गोल दीवाल होती है और

    उसके ऊपर घास का छåर होता है | इस छåर का आधार कूबे के भीतर खड़े एक ख¾े पर होता है | कूबे

    का एक नीचा दरवाजा होता है, िजसमZ झुक कर ही जाया जा सकता है | यही दरवाजा कूबे मZ हवा के आने-

    जाने का साधन होता है | उसमZ िकवाड़ शायद ही कही ंहोते हs | हमारी तरह वे लोग भी दीवाल को और कूबे

    की फशX को िमäी और लीद या गोबर से लीपते हs | ऐसा माना जाता है िक वे लोग कोई भी चौकोन चीज नही ं

    बना सकते | उYोनें अपनी आँखो ंको केवल गोल चीजZ देखने और बनाने की ही तालीम दी है | कुदरत रेखागिणत

    की सीधी लकीरZ और सीधी आकृितयाँ बनाती नही ंदेखी जाती | और कुदरत के इन िनद´ष बालको ंका ºान

    कुदरत के उनके अनुभव पर आधार रखता है |

    िमäी के इस महल मZ साज-सामान भी उसके अनुkप ही होता है | यूरोपीय सvता ने दिJण अKीका मZ �वेश

    िकया उससे पहले तो वहाँ के हबशी लोग पहनने-ओढ़ने और सोने-बैठने के िलए चमड़े का ही उपयोग करते

    थे | कुरसी, टेबल, संदूक वगैरा चीजZ रखने िजतनी जगह भी उस महल मZ नही ंहोती थी; और आज भी ये चीजZ

    उसमZ नही ंहोती, ऐसा बeत हद तक कहा जा सकता है | अब उYोनें घर मZ कलो ंका उपयोग शुk िकया है

    | िÇिटश स�ा की rथापना से पहले हबशी ी-पु¥ष दोनो ंलगभग नæ अवrथा मZ ही घूमते-िफरते थे | आज भी

    गाँवो ंमZ बeत लोग इसी अवrथा मZ रहते हs | वे अपने गुj भागो ंके एक चमड़े से ढंक लेते हs | कुछ लोग तो

    इतना भी नही ंकरते | परु इसका अथX कोई पाठक यह न करे िक इस कारण से वे लोग अपनी इ�यो ंको

    वश मZ नही ंरख सकते | जहाँ बeत बड़ा समुदाय िकसी `रवाज के वश होकर चलता हो वहाँ दूसरे समुदाय को

    वह `रवाज अनुिचत लगे, तो भी यह िबलकुल संभव है िक पहले समुदाय की िx मZ अपने `रवाज मZ कोई दोष

    न हो | इन हबिशयो ंको एक-दूसरे की ओर देखते रहने की फुरसत ही नही ंहोती | शुकदेवजी जब नæ अवrथा

    मZ ³ान कर रही यो ंके बीच होकर िनकल गये तब न तो dयं उनके मन मZ कोई िवकार उç eआ और न

    उन िनद´ष यो ंको िकसी �कार का Jोभ eआ अथवा लËत होने जैसा कुछ लगा, ऐसा भागवतकार कहते

    हs | और इस वणXन मZ मुझे कुछ भी अलौिकक नही ंलगता | िहqु�ान मZ आज ऐसे अवसर पर हम मZ से कोई

    मनु¹ इतनी dता और िनिवXकारता का अनुभव नही ंकर सकता, यह कोई मनु¹-जाित की पिवaता के

    �य की मयाXदा का नही ंबताता, परु हमारे अपने दुभाXè और पतन को ही बताता है | हम लोग इन हबिशयो ं

    को जो जंगली मानते हs वह हमारे अिभमान के कारण | वा�व मZ हम मानते हs वैसे जंगली वे नही ंहै |

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    ये हबशी जब शहर मZ आते है तब उनकी यो ंके िलए यह िनयम बना eआ है िक छाती से घुटनो ंतक का

    भाग उYZ ढांकना ही चािहए | इस िनयम के कारण इन यो ंको इा न होने पर भी ऐसा व अपने शरीर

    पर लपेटना पड़ता है | इसके फलdkप दिJण अKीका मZ इस नाप के कपड़े की खूब खपत होती है और

    वैसी लाखो ंचादरZ या कमिलया यूरोप से हर साल वहाँ आती हs | पु¥षो ंके िलए कमर से घुटनो ंतक का भाग

    ढांकना अिनवायX है, इसिलए उYोनें तो यूरोप के उतरे eए कपड़े पहनने का `रवाज अपना िलया है | जो लोग

    ऐसा नही ंकरते वे नाड़े वाला जांिघया पहनते हs | ये सब कपड़े यूरोप से ही वहाँ आते हs |

    इन हबिशयो ंका मु¯ आहार मकई है | िमलने पर वे मांस भी खाते हs | सौभाè से वे लोग िमचX-मसालो ंसे

    िबलकुल अनजान हs | उनके भोजन मZ मसाला डाला गया हो अथवा हलदी का रंग भी आ गया हो, तो वे नाक

    िसकोड़Zगे; और जो लोग पूरे जंगली कहे जाते हs, वे तो ऐसे खाने को छुएँगे भी नही ं| सािबत उबाली eई मकई

    के साथ थोड़ा नमक िमला कर एक बार मZ एक पौडं मकई खा जाना िकसी साधारण जूलू के िलए जरा भी

    आयX की बात नही ंहै | वे लोग मकई का आटा पीसते हs, उसे पानी मZ उबालते है और उसकी लपसी बनाकर

    खाने मZ संतोष मानते हs | जब कभी मांस िमल जाता है तब उसे क¶ा या पका – उबाला eआ या आग पर भुना

    eआ – केवल नमक के साथ वे लोग खा जाते हs | चाहे िजस �ाणी का मांस खाने मZ उYZ कोई िहचक नही ंहोती

    |

    उनकी भाषाओ ंके नाम जाितयो ंके नाम पर ही होते हs | लेखन-कला उनमZ गोरो ंने ही आरंभ की है | हबशी

    वणXमाला या ककहरे जैसी कोई जीच नही ंहै | अब हबशी भाषाओं मZ बाइबल आिद पु�कZ रोमन िलिप मZ छपी

    गई हs | जूलू भाषा अL मधुर और मीठी है | उसके अिधकतर शो ंके अंत मZ ‘आʼ का उ¶ार होता है |

    इसकी वजह से भाषा का नाद कानो ंको मुलायम और मधुर लगता हs | उसके शो ंमZ अथX और का¨ दोनो ं

    होते हs, ऐसा मsने पढ़ा है और सुना है | िजन थोड़े से शो ंका मुझे अनायास ºान �ाj eआ है, उनके आधार

    पर भाषा-िवषयक उपयुX मत मुझे उिचत मालूम eआ है | शहरो ंऔर उपिनवेशो ंके जो यूरोिपयन नाम मsने

    िदये हs, उन सबके मधुर और का¨मय हबशी नाम तो हs ही | ये नाम याद न होने से मs यहाँ नही ंदे सका ँ |

    ईसाई पाद`रयो ंके मतानुसार हबिशयो ंका कोई धमX ही नही ंथा, और आज भी नही ंहै | परु यिद हम धमX का

    िव�ृत और िवशाल अथX करZ तो यह कहा जा सकता है िक हबशी ऐसी अलौिकक श को अव मानते

    और पूजते हs, िजसे वे समझ नही ंसकते | इस श से वे लोग डरते भी हs | उYZ इस सL का भी अx भान

    है िक शरीर के नाश के साथ मनु¹ का सवXथा नाश नही ंहो जाता | यिद हम नीित को धमX का आधार मानZ, तो

    नीित मZ िवास रखने वाले होने के कारण हबिशयो ंको धािमXक भी माना जा सकता है | सच और झठू का उYZ

    पूरा-पूरा भान है | अपनी dाभािवक अवrथा मZ वे लोग सL का िजतना पालन करते हs उतना गोरे या हम लोग

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    करते हs या नही ंयह शंकाद है | उनके मqर या मqर जैसे कोई rथान नही ंहोते | अ �जाओ ंऔर

    जाितयो ंकी तरह उन लोगो ंमZ भी अनेक �कार के अंध िवास देखने मZ आते हs |

    पाठको ंको यह जानकर आयX होगा िक शरीर की ताकत मZ संसार की िकसी भी जाित से घिटया न ठहरने

    वाली यह जाित सचमुच इतनी डरपोक है िक िकसी गोरे बालक को देखकर भी डर जाती है | अगर कोई आदमी

    हबशी के सामने िप�ोल का नीशाना बांधे, तो या तो वह भाग जाएगा या इतना मूढ़ हो जाएगा िक उसमZ भागने

    की भी ताकत नही ंरह जाएगी | इसका कारण तो है ही | मुÀीभर गोरे आकर इतनी बड़ी और जंगली जाित को

    वश मZ कर सके हs, इसमZ कोई जादू अव होना चािहए ऐसा उनके मन मZ बैठ गया है | वे लोग भाले और तीर-

    कमान का उपयोग तो अी तरह जानते थे | परु ये हिथयार उनसे छीन िलए गये हs | और बqूक न तो िकसी

    िदन उYोनें देखी और न कभी चलाई | यह बात उनकी समझ मZ ही नही ंआती िक िजस बqूक को न तो

    िदयासलाई िदखानी होती, न हाथ की अंगुली चलाने के िसवा दूसरी कोई गित करनी पड़ती, उसकी छोटी सी

    नली से एकाएक आवाज कैसे िनकलती है, आग कैसे भड़क उठती हs और गोली के लगते ही पल भर मZ आदमी

    के �ाण कैसे उड़ जाते हs ! इसिलए हबशी बqूक चलाने वाले आदमी के डर से हमेशा घबराया eआ रहता है |

    उसने और उसके बापदादो ंने इस बात का अनुभव िकया है िक बqूक की इन गोिलयो ंने अनेको ंिनराधार और

    िनद´ष हबिशयो ंके �ाण िलए हs | परु उनमZ से अिधकतर लोग आज भी इसका कारण नही ंजानते |

    इस जाित मZ धीरे-धीरे ‘सvताʼ का �वेश हो रहा है | एक ओर भले पादरी अपनी बुw और समझ के अनुसार

    ईसा मसीह का सqेश उन लोगो ंके पास पeँचाते हs | वे हबिशयो ंके िलए Úूल खोलते हs और उYZ सामा

    अJर-ºान देते हs | उनके �य से कुछ च`रaवान हबशी भी तैयार eए हs | लेिकन बeत से हबशी, जो आज

    तक अJर-ºान की कमी के कारण और सvता के प`रचय के अभाव मZ अनेक �कार की अनीितयो ंसे मु

    थे, आज ढोगंी और पाखंडी भी बन गये हs | सvता के संपकX मZ आये eए हबिशयो ंमZ से शायद ही कोई शराब

    की बुराई से बचा हो | और जब उनके शशाली शरीर मZ शराब का �वेश होता है तब वे पूरे पागल बन जाते

    हs और न करने जैसा सब कुछ कर डालते हs | सvता के बढ़ने के साथ आवकताओ ंका बढ़ना उतना ही

    िनित है िजतना दो और दो िमलकर चार होना | हबिशयो ंकी आवकतायZ बढाने के िलए किहये अथवा उYZ

    mम का मूà िसखाने के िलए किहये, �Lेक हबशी पर मंुड-कर (पॉल-टैÒ) और झोपंड़ी-कर (कूबा-कर)

    लगाया गया है | यह कर यिद उन पर न लगाया जाय तो अपने खेतो ंमZ रहने वाली यह जाित ज़मीन के भीतर

    सैकड़ो ंगज गहरी खदानो ंमZ सोना या हीरे िनकालने के िलए न उतरे | और यिद खदानो ंके िलए हबिशयो ंकी

    मेहनत का लाभ न िमले, तो सोना या हीरे पृéी के गभX मZ ही पड़े रहZ | इसी तरह यिद उन पर ऐसा कर न लगाया

    जाय, तो यूरोिपयनो ंको दिJण अKीका मZ नौकर िमलने किठन हो जाएँ | इसका नतीजा यह eआ है िक खदानो ं

    मZ काम करने वाले हजारो ंहबिशयो ंको अ रोगो ंके साथ एक �कार का Jयरोग भी हो जाता है, िजसे ‘माइनसX

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    थाइिससʼ कहा जाता है | यह रोग �ाण-घातक होता है | उसके पंजे मZ फंसने के बाद कुछ ही लोग उबर पाते

    हs | ऐसे हजारो ंआदमी अपने बाल-ब¶ो ंसे दूर खदानो ंमZ एक साथ रहZ, तो उस rथित मZ वे संयम का िकतना

    पालन कर सकते हs, यह पाठक आसानी से सोच सकते हs | इसके फलdkप जो रोग (उपदंश आिद) फैलते

    हs, उनके िशकार भी ये लोग हो जाते हs | दिJण अKीका के िवचारशील गोरे भी इस गंभीर � पर िवचार करने

    लगे हs | उनमZ से कुछ लोग अव यह मानते हs िक सvता का �भाव इस जाित पर सब िमलाकर अा पड़ा

    है, ऐसा दावा शायद ही िकया जा सके | परु सvता का बुरा �भाव तो इस जाित पर हर आदमी देख सकता

    है |

    िजस महान देश मZ ऐसी िनद´ष जाित रहती थी वहाँ आज से लगभग ४०० वषX पहले डच लोगो ंने अपनी छावनी

    डाली | वे लोग गुलाम तो रखते ही थे | कुछ डच अपने जावा उपिनवेश से मलायी गुलामो ंको लेकर दिJण

    अKीका के उस भाग मZ पeँचे, िजसे हम केप कॉलोनी के नाम से जानते हs | ये मलायी लोग मुसलमान हs | उनमZ

    डच लोगो ंका र है और इसी �कार डच लोगो ंके कुछ गुण भी हs | वे अलग-अलग तो सारे दिJण अKीका

    मZ फैले िदखाई देते हs, परु उनका मु¯ के� केप टाउन ही माना जाएगा | आज उनमZ से कुछ मलायी गोरो ं

    की नौकरी करते हs और दूसरे dतंa धा करते हs | मलायी याँ बड़ी उमी और होिशयार होती हs | उनका

    रहन-सहन अिधकतर साफ-सुथरा देखा जाता है | याँ धोबी का और िसलाई का काम बeत अा कर

    सकती हs | पु¥ष कोई छोटा-मोटा ¨ापार करते हs | बeतेरे इßा या तांगा चलाकर अपना गुजर करते हs | कुछ

    लोगो ंने उ¶ अंMेजी िशJण भी िलया है | उनमZ से एक डॉ. अुल रहमान केप टाउन मZ मशर हs | वे केप

    टाउन की पुरानी धारासभा मZ भी पeँच सके थे | नये संिवधान के अनुसार मु¯ धारासभा मZ जान�