Grade X (A) · (क )'ए क क ह ा न ी य ह भ ी 'प ा ठ म ले ख क...

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#GrowWithGreen Grade X (A) Hindi (Mock Test)

Transcript of Grade X (A) · (क )'ए क क ह ा न ी य ह भ ी 'प ा ठ म ले ख क...

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    Grade X (A)Hindi

    (Mock Test)

  • Mock Text क�ाः दसवीं (अ)

    �नधा��रत समय 3 घटें अ�धकतम अकंः 80

    ख�ड - क 1. �न�न�ल�खत ग�यांश को �यानपवू�क प�ढ़ए और नीचे �लखे ��न� के उ�र द�िजएः ने�यशैी ने बातचीत क� श�ुआत �शकायत� से क�। उनका कहना था �क, "भारत बहुत बड़ा देश है। यहाँ क� परंपरा बहुत सम�ृध है पर यहाँ के �फ़�म वाले इतनी छोट�-छोट� बात� पर झठू बोलते ह� नह�ं बि�क झठू �दखाते भी ह� �क उ�ह� देखकर दखु होता है। आप �फ़�म 'हम �दल दे चकेु सनम' को ल�िजए। इस परू� �फ़�म क� श�ूटगं हंगर� या य� क�हए �क हमारे शहर बडुापे�ट म� हुई थी। पर �फ़�म म� उसे इटल� का शहर बता �दया गया। इस झठू क� ज़�रत �या थी? य� यह उस धरती के साथ भी नाइंसाफ� है िजसके हु�न को आपने कैमरे म� कैद कर परदे पर �दखाया, पर जगह दसूर� बता द�।" (नोट यह दवूा�-3 से �लया गया है।) (i) एक जगह के नाम बदल देने से �या गलत हो जाएगा है?(2) (ii) �कस �कार के झठू को देखकर दखु उ�प�न होता है? (2) (iii) ग�यांश को पढ़कर बताइए �क एक �फ़�मकार क� �या िज़�मेदार� होती है? (2) (iv) ने�यशैी क� नाराज़गी का �या कारण था? (1) (v) छोट�-छोट� म� �या�त समास का नाम बताइए (1) 2. �न�न�ल�खत का�यांश को �यानपवू�क पढ़कर पछेू गए ��न� के उ�र �ल�खएः ऊँच-नीच का भेद न माने, वह� �े�ठ �ानी है, दया-धम� िजसम� हो, सबसे वह� प�ूय �ाणी है। ���य वह�, भर� हो िजसम� �नभ�यता क� आग, सबसे �े�ठ वह� �ा�मण है, हो िजसम� तप-�याग। तजे�वी स�मान खोजत े नह�ं गो� बतला के, पात े ह� जग म� �शि�त अपना करतब �दखला के। ह�न मलू क� ओर देख जग गलत कहे या ठ�क, वीर खींच कर ह� रहत े ह� इ�तहास� म� ल�क। (i) क�व ने �ानी क� �या �वशषेता बताई है? (2)

  • (ii) 'दया-धम� िजसम� हो, सबसे वह� प�ूय �ाणी है।'- ��ततु पिं�त का भाव �प�ट क�िजए। (2) (iii) 'इ�तहास म� ल�क' का ता�पय� बताइए। (1) (iv) का�यांश को पढ़कर इसक� भाषा शलै� क� �वशषेता बताइए। (1) (v) 'तप-�याग' म� �या�त समास बताइए। (1)

    ख�ड - ख (�यावहा�रक �याकरण)

    3. �नद�शानसुार उ�र �ल�खए- 1✕3=3 (क) बाज़ार से रंग-�बरंगे कागज़ ले आओ। (संय�ुत वा�य म� बद�लए) (ख) जो माता-�पता क� बात मानता है, उसे ह� सब पसदं करते ह�। (सरल वा�य म� बद�लए) (ग) एक तमुने ह� इस �कले पर �वजय �ा�त क� है। (वा�य भेद �ल�खए) 4. नीचे �दए गए वा�य� के वा�य प�रवत�न क�िजए- 1✕4=4 (क) माँ �वारा �मठाई बनाई गई। (कतृ�वा�य म�) (ख) गौर� रातभर सो न सक�। (भाववा�य म�) (ग) सोहन मोहनगढ़ से चनुाव लड़गेा। (कम�वा�य) (घ) ल�लता क� पढ़ाई के �लए माता-�पता ने बहुत लापरवाह� क�। (भाववा�य) 5. रेखां�कत पद� का पद-प�रचय द�िजए- 1✕4=4 (क) वहाँ पाँच लड़�कयाँ बठै� ह�। (ख) तमु सदा सखुी रहो। (ग) ओह, यह �या हो गया ! (घ) धीरे-धीरे सबुह होने लगी। 6. �न�न�ल�खत ��न� के उ�र �नद�शानसुार �ल�खए- 1✕4=4 (क) रौ� का अनभुाव �ल�खए।

  • (ख) उ�साह (ग) रस के �कतने भेद होत े ह�? (घ) भयानक रस का एक उदाहरण �ल�खए।

    ख�ड - ग

    7. �न�न�ल�खत ग�यांश को �यानपवू�क पढ़कर नीचे �दए गए ��न� के उ�र �ल�खए- शीला अ�वाल ने सा�ह�य का दायरा ह� नह�ं बढ़ाया था, बि�क घर क� चारद�वार� के बीच बठैकर देश क� ि�थ�तय� को जानने-समझने का जो �सल�सला �पताजी ने श�ु �कया था, उ�ह�ने वहाँ से खींचकर उसे भी ि�थ�तय� क� स��य भागीदार� म� बदल �दया। सन ्46-47 के �दन...... वे ि�थ�तयाँ, उसम� वसेै भी घर म� बठेै रहना सभंव था भला? �भात-फे�रयाँ, हड़ताल�, जलुसू, भाषण हर शहर का च�र� था और परेू दमखम और जोश-खरोश के साथ इन सबसे जड़ुना हर यवुा का उ�माद। म� भी यवुा थी और शीला अ�वाल क� जो�शल� बात� ने रग� म� बहते खनू को लावे म� बदल �दया था। ि�थ�त यह हुई �क एक बवडंर शहर म� मचा हुआ था और एक घर म�। �पताजी क� आज़ाद� क� सीमा यह�ं तक थी �क उनक� उपि�थ�त म� घर म� आए लोग� के बीच उठँू-बठँूै, जानूँ-समझूँ। हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़ताल� करवाती, लड़क� के साथ शहर क� सड़क� नापती लड़क� को अपनी सार� आध�ुनकता के बावजदू बदा��त करना उनके �लए मिु�कल हो रहा था तो �कसी क� द� हुई आज़ाद� के दायरे म� चलना मेरे �लए। जब रग� म� लहू क� जगह लावा बहता हो तो सारे �नषधे, सार� वज�नाएँ और सारा भय कैसे �व�त हो जाता है, यह तभी जाना और अपने �ोध से सबको थरथरा देने वाले �पताजी से ट�कर लेने का जो �सल�सला तब श�ु हुआ था, राजे�� से शाद� क�, तब तक वह चलता ह� रहा। (i) �पताजी के �लए �या बात� बदा��त के बाहर हो रह� थीं? (2) (ii) ��ततु ग�यांश पढ़कर म�न ू भंडार� के च�र� क� �वशषेताएँ बताइए। (2) (iii) �पताजी �वारा अपनी बेट� के �लए तय क� गई आज़ाद� क� सीमा कहाँ तक थी? (1) 8. �न�न�ल�खत ��न� के उ�र सं�ेप म� द�िजए- 2✕4=8 (क) 'एक कहानी यह भी' पाठ म� ले�खका अपने �पता से अपनी वचैा�रक टकराहट क� बात करती है। उसके �वषय म� �ल�खए। (ख) हालदार साहब के �लए कै�टन कौतहूल का �वषय �य� था?

  • (ग) ‘ि��याँ श�ै�क �ि�ट से प�ुष� से कम नह�ं ह�’- इस कथन को �स�ध करने के �लए ��ववेद� के दो तक� �ल�खए? (घ) �बि�म�ला खाँ के च�र� म� �व�यमान दो �वशषेताओं का वण�न क�िजए िज�ह� आप अपनाना चाह�गे। 9. मन क� मन ह� माँझ रह�। क�हए जाइ कौन प ै ऊधौ, नाह�ं परत कह�। अव�ध अधार आस आवन क�, तन मन �बथा सह�। अब इन जोग सँदेस�न स�ुन-स�ुन, �बर�ह�न �बरह दह�। चाह�त हुतीं गुहा�र िजत�ह ं त�, उत त� धार बह�। 'सरूदास' अब धीर धर�ह ं �य�, मरजादा न लह�। (i) गो�पय� क� कौन सी अ�भलाषा पणू� नह�ं हुई है? (2) (ii) उ�धव �वारा �दया गया योग संदेश गो�पय� को �य� क�ट देता है? (2) (iii) 'अब धीर धर�ह ं �य�, मरजादा न लह�' का अथ� बताइए (1) 10. �न�न�ल�खत ��न� के उ�र सं�ेप म� �ल�खए- 2✕4=8 (क) 'आ�मक�य' क�वता के आधार पर बताओ �क �म�ृत को पाथेय बनाने से क�व �या कहना चाहता है? (ख) 'क�यादान' क�वता म� माँ �वारा बेट� को द� गई सीख का वण�न क�िजए। (ग) 'छाया मत छूना' क�वता के अदंर 'मगृत�ृणा' श�द का उ�लेख �कया गया है। क�वता के आधार पर उसका अथ� बताइए। (घ) संगतकार जसेै �यि�त परेू संसार म� �व�यमान है। इस ससंार म� उनका �या मह�व है, अपने श�द� म� समझाइए? 11. पाठ के अनसुार �हरो�शमा म� जो घटना घट� वह �व�ान का भयानक द�ुपयोग �स�ध हुआ है। आपके अनसुार �व�ान का द�ुपयोग कैसे और �य� हो रहा है? 4

    अथवा

  • 'माता का अचँल' पाठ को पढ़कर पता चलता है �क ब�चे का अपने �पताजी से अ�धक लगाव था ले�कन जब वह मसुीबत म� पड़ता है, तो माँ के अाँचल म� जाकर ह� �छपता है। आपके अनसुार ऐसा �या कारण था �क उसे �छपने के �लए माँ का आचँल �पता क� गोद से अ�धक उपय�ुत लगा?

    ख�ड - घ 12. �न�न�ल�खत म� से�कसी एक �वषय पर �दए गए सकेंत �बदंओुं के आधार पर लगभग 200 से 250 श�द� म� �नबधं �ल�खए। 10 (क) मन�ुय और धम�

    ● मन�ुय व धम� का संबधं ● धम� का अ�भ�ाय ● धम� और �व�ान का स�ब�ध ●

    (ख) आध�ुनक जीवन म� खेल� का मह�व ● खेल� और �वा��य का सबंधं ● खेल� �वारा �मलने वाले लाभ

    (ग) मेर� ��य प�ुतक

    ● �भा�वत करने के कारण ● उसके सबंधं म� जानकार� ● उसक� �वशषेताएँ

    13. क�ा म� बढ़ती अनशुासनह�नता को रोकने के �लए �धानाचाय� को प�। 5

    अथवा

    पर��ा म� असफल होने पर सां�वना देने हेत ु �म� को प� �ल�खए।

  • 14. आप एक �वयंसेवी सं�था के सद�य ह�। आपक� स�ंथा गर�ब �व�या�थ�य� क� प�ुतक� तथा व��� से सहायता करना चाहती है। उसके �वतरण सबंधंी सचूना देते हुए �व�ापन तयैार क�िजए। 5

  • उ�र

    ख�ड - क

    1. (i) एक जगह के नाम बदल देने से उस जगह क� पहचान �कसी ओर को �मल जाती है, जो�क गलत है। इसके �लए 'हम �दल दे चकेु सनम' का उदाहरण �दया है। िजसम� इटल� का नाम आया है और इसक� श�ूटगं बडुापे�ट म� हुई है। बडुापे�ट के साथ यह गलत हुआ है। उस �फ�म को देखकर लोग इटल� क� �शंसा कर�गे, जब�क यह हंगर� का बडुापे�ट है। (ii) भारतीय �फ़�म म� छोट�-छोट� बात� पर झठू बोला जाता है और झूठ को �दखाया भी जाता है। ये सब झठू देखकर दखु उ�प�न होता है। (iii) एक �फ़�मकार क� िज़�मेदार� होती है �क वह �फ़�म म� स�ची और अ�छ� चीज़� का समावेश करे। �फ़�म मनोरंजन के �लए बनाए मगर �कसी के साथ अ�याय न करे। (iv) ने�यशैी क� नाराज़गी का कारण 'हम �दल दे चकेु सनम' �फ़�म म� बडुापे�ट के �थान पर इटल� का नाम देना है। उनके अनसुार इस �फ़�म क� श�ूटगं बडुापे�ट म� हुई है। ले�कन इटल� का नाम गलत �दया गया है। (v) छोट�-छोट� म� अ�ययीभाव समास है। 2. (i) क�व ने �ानी क� �वशषेता बताई है �क वह ऊँच-नीच के भेद को नह�ं मानते ह�। उनके �लए सारे संसार के �ाणी एक ह� ह�। धम�, जा�त, रंग इ�या�द के आधार पर वह लोग� के साथ भेदभाव नह�ं करत े ह�। (ii) इस पिं�त का भाव है �क िजस मन�ुय के अदंर दसूरे लोग�, जीव� आ�द के ��त दया-धम� का भाव होता है, वह इस ससंार म� प�ूयनीय होता है। दया-धम� ऐसा भाव िजसने मानवता को जी�वत रखा है। ऐसे लोग� का ससंार म� स�मान �कया जाता है। (iii) 'इ�तहास म� ल�क' का ता�पय� इ�तहास म� अ�छे तथा महान काय� करके अपने नाम को दज� कराना है। (iv) इसक� भाषा शलै� ओजमयी तथा सरल है। इसम� �वाह व गेयता का गणु भी �व�यमान है। त�सम श�द� का बड़ा सुदंर �योग �कया गया है। (v) तप-�याग म� �वदंव समास है।

  • ख�ड - ख

    3. (क) बाज़ार जाओ और रंग-�बरंगे कागज़ ले आओ। (ख) माता-�पता क� बात मानने वाल� को ह� सब पसदं करत े ह�। (ग) एक तमुने ह� इस �कले पर �वजय �ा�त क� है। (सरल वा�य)

    4. (क) माँ ने �मठाई बनाई। (ख) गौर� से रातभर सोया न जा सका। (ग) सोहन �वारा मोहनगढ़ से चनुाव लड़ा जाएगा। (घ) ल�लता क� पढ़ाई के �लए माता-�पता �वारा बहुत लापरवाह� क� गई।

    5. (क) �वशषेण, �नि�चत सं�यावाचक, पिु�लगं, एकवचन। (ख) गुणवाचक �वशषेण, एकवचन, पिु�लंग। (ग) अकम�क ��या, एकवचन, पिु�लंग। (घ) अ�यय, र��तवाचक ��या �वशषेण।

    6. (क) �ोध के कारण काँपना, ने�� का लाल होना, श�� चलाना इ�या�द। (ख) वीर रस का �थायी भाव �ल�खए। (ग) �यारह (घ) उधर गरजती �सधं ु लर�हयाँ कु�टल काल के जाल�-सी। चल� आ रह�ं फेन उगलती फन फैलाए �याल�-सी।।

    ख�ड - ग

    7. (i) �पताजी के �लए ले�खका �वारा हाथ उठा-उठाकर नारे लगाती, हड़ताल� करवाती, लड़क� के साथ शहर क� सड़क� नापती बात� बदा��त से बाहर हो रह� थीं। (ii) ��ततु ग�यांश के अनसुार म�नू भडंार� के च�र� क� �वशषेताएँ इस �कार थीं �क वे मज़बतू, साहसी, �नडर, नए �वचार� क� लड़क� थीं। वे �वयं को प�ुष से नीचे नह�ं मानती थी। उनके साथ कंधे-से-कंधा �मलाकर चलने वाल� थी। (iii) ले�खका के �वारा �पताजी क� आज़ाद� क� सीमा यह�ं तक थी �क उनक� उपि�थ�त म� घर म� आए लोग� के बीच उठँू-बठँूै, जानूँ-समझूँ।

  • 8. (क) ले�खका के �पता श�क� �वभाव के थे। इसी कारण जब से ले�खका ने होश सँभाला तब से ह� �कसी भी बात पर टकराव चलता रहता था। इ�ह�ं ख�ंडत �व�वास� के कारण ले�खका को अपने अदंर भी यह �वभाव नज़र आता था जो कह�ं कंुठाओं के �प म� तो कह�ं ��त��याओं के �प म� �दखाई देता था। ले�खका आज़ाद �याल� क� थी और �पता को यह पसंद नह�ं था। ले�खका के अनसुार वे दसूर� बेट� को अ�धक मह�व देते थे। यह� कारण था �क ले�खका का अपने �पता से वचैा�रक टकराहट थी। (ख) हालदार साहब के �लए कै�टन कौतहूल का �वषय था �य��क उसने नेताजी क� म�ूत � को असल� का च�मा पहनाया था। यह एक बहुत बड़ी बात थी। ऐसे समय म� जब लोग� के पास समय क� कमी है कोई एक ऐसा है जो देश तथा उससे जड़ुी चीज़� के ��त अपने कत��य को समझता है। हालदार साहब यह सोचकर कै�टन के �वषय म� जानने के �लए �े�रत हो जात े ह�। (ग) ि��याँ श�ै�क �ि�ट से प�ुष� से कम नह�ं रह� ह�, इसके �लए ��ववेद� जी ने ये दो उदाहरण �दए- (i) �ाचीन काल म� भी ि��याँ �श�ा �हण कर सकती थीं। शीला, �व�जा इसके उदाहरण ह�। उनक� क�वताएँ के नमूने �मलत े ह�। (ii) बौ�ध-�ंथ ���पटक का उ�ह�ने उदाहरण �दया है, िजसम� थेर�गाथा म� अनेक ि��य� के पद� क� रचना �मलती ह�। (घ) �बि�म�ला खां साहब को देश-�वदेश के अन�गनत परु�कार �ा�त थे। देश के सव��च परु�कार तक उनको �मल चकेु थे। इसके बाद भी अहंकार उनके �वभाव को छू तक नह�ं गया था। यह उनके च�र� म� �व�यमान सबसे बड़ी �वशषेता थी। �बि�म�ला खां साहब प�र�म म� �व�वास करते थे। वे नाम कमाने के बाद भी सगंीत साधना करते थे। म� उनके च�र� म� �व�यमान इन दो �वशषेताओ ं को अपनाना चाहँूगा। 9. (i) गो�पय� क� यह अ�भलाषा थी �क वे कृ�ण के स�मखु अपने �ेम को �य�त कर� मगर वे नह�ं कर सक�ं। कृ�ण भी उनके साथ नह�ं ह�, जो उ�ह� अपने �दय क� बात बताएँ। (ii) उ�धव �वारा �दया गया योग सदेंश गो�पय� को क�ट देता है �य��क वे उ�मीद कर रह� थीं उ�धव कृ�ण के आने का समाचार सनुाएँगे और उनके क�ट� को कम कर�गे। ऐसा नह�ं हुआ इसके �वपर�त उ�धव ने उ�ह� योग का सदेंश सनुा �दया। (iii) इसका अथ� है �क धयै� धारण करने का कारण समा�त हो गया है। हमार� जो मया�दा थी, वह चल� गई है।

  • 10. (क) िजस �कार एक प�थक को या�ा को परूा करने के �लए माग� म� पाथेय (भोजन) क� आव�यकता होती है, उसी �कार अपनी लबंी जीवन या�ा म� क�व ने पाथेय �पी मधरु व कटु याद� जमा क� ह�। वे इनके सहारे अपना जीवन जी रहा है। जीवन स�ंाम म� ये उसक� सहायक ह�। (ख) क�वता म� माँ ने बेट� को अ�याय का �वरोध करने, लड़क� क� पारंपा�रक छ�व से �नकलने तथा बेट� को अपने �प पर मो�हत नह�ं होने क� सीख द� है। (ग) 'मगृत�ृणा' दो श�द� से �मलकर बना है 'मगृ' व 'त�ृणा'। इसका ता�पय� है आखँ� का �म अथा�त ् जब कोई चीज़ वा�तव म� न होकर �म क� ि�थ�त बनाए, उसे मगृत�ृणा कहते ह�। इसका �योग क�वता म� �भतुा क� खोज म� भटकने के सदंभ� म� हुआ है। इस त�ृणा म� फँसकर मन�ुय �हरण क� भाँ�त �म म� पड़ा हुआ भटकता रहता है। (घ) य�द संगतकार न हो तो इस ससंार म� �व�भ�न �कार के काय� करना क�ठन हो जाए। �े� कोई भी �य� न हो संगतकार क� आव�यकता अव�य पड़ती है। एक सगंतकार म�ुयगायक, म�ुय अ�भनेता आ�द क� दबु�लताओं को दबा देता है। उसके �यास� के कारण ह� म�ुय लोग� के गुण� का �वकास होता है। उनके कमज़ोर प� को सगंतकार �वयं के ऊपर ले लेता है और उनके सफलता के माग� को खोल देता है। य�द सगंतकार न हो तो म�ुयगायक या �यि�त अकेला पड़ जाए। इस�लए इस ससंार म� उनक� उपयो�गता बनी रहेगी। 11. मन�ुय ने सदैव �व�ान का द�ुपयोग अपने �वाथ� �हत के �लए �कया है। मन�ुय ने अपनी र�ा के �लए हा�थयार� का सहारा �लया। �व�प �दन-��त�दन भयानक होता गया। आज मन�ुय ने 'परमाण'ु ह�थयार का आ�व�कार कर �लया ह�। उसक� इस खोज का सबसे वीभ�स �प �हरो�शमा पर �गरे परमाणु बम का था। उसके �वारा �कए गए अ�य आ�व�कार जसेै क��यटूर, ई-मेल िजनके �वारा एक �ण म� �कसी भी जगह क� सरु�ा �यव�था को भेजकर गु�त जानका�रयाँ �नकाल� जा सकती ह�। मनोरंजन के नाम पर भयानक वी�डय� या क��यटूर गेम बनाए गए ह�। ब�च� के मान�सक �वकास को �गरा रहे ह�। ये सब �व�ान क� देन है िजनका सदपुयोग होने के �थान पर द�ुपयोग हो रहा है।

    अथवा

  • ब�चे का अ�धक समय �पता के साथ ह� बीतता था। वह �पता के साथ सोता, �पता के साथ नहाकर पजूा-�ाथ�ना म� बठैता था। यह� कारण था �क उसका अपने �पता से बहुत लगाव था। जब वह मसुीबत म� पड़ता है तो उसे माँ ह� याद आती है। अपने �म�� के साथ खेलते समय पेड़ क� खोल से सांप �नकलता देखकर वह दौड़कर माँ क� गोद म� चला जाता है। माँ का मम�व, अ�य�धक �नेह, �न�वाथ� दलुार इ�या�द कारण ह�, जो उसे माँ क� गोद म� सरु�ा का भाव �दान करते ह�। वह �बना सोचे समझे माँ के पास जा पहँुचता है। ऐसा नह�ं है �क �पता का �ेम �वाथ� से य�ुत था मगर उसम� वह अहसास नह�ं था, जो ब�चे बचपन म� पाता है। माँ ब�चे को अपने खनू से �सचंती है। इस कारण ब�चे माँ से जड़ु जाते ह�। �पता के साथ ऐसा अहसास नह�ं होता है। यह अहसास उसे माँ से मसुीबत के समय म� भी जोड़ े रखता है और भागकर उसके पास चला आता है।

    ख�ड - घ

    12. (क) �ाचीन काल म� धम� का सबंधं मानव मन क� स�ूम तथा आ�याि�मक चेतनाओं से जड़ुा था। उसम� परलोक सधुार क� बात कह� जाती थी पर�तु जब कालांतर मे जा�तय�, वग�, सं�दाय� का �नमा�ण होने लगा तो धम� का �व�प भी सकुं�चत होता गया। आज धम� का अथ� केवल सी�मत तथा सां�दा�यक है। छुआ-छूत जा�तवाद तथा वग� �व�वेष पर आधा�रत आज का धम� स�चे अथ� म� धम� नह�ं कहा जा सकता। धम� के नाम पर आज भी र�तपात होता है, उ�चता या �न�नता के आधार पर वग� �व�वेष का �वष फैलाया जाता है तथा मानव को मानव का श�ु बनाया जाता है। स�चे धम� क� प�रभाषा तो मानवीयता है। स�ह�णतुा, समानता, भाईचारा, परोपकार तथा मानव-मा� को अपने समान समझना ह� वा�तव म� धम� है। धम� से �वह�न �यि�त तो पशु के समान होता है। आज का मानव बौ��धकता के एक ऐसे यगु से गुज़र रहा है िजसम� कम�कांड� क� लौह �ंखला टूट गई है, �वग� तथा नरक क� क�पनाएँ �छ�न �भ�न हो गई ह�, तथा मानव अधं�व�वास� और ��ढ़य� के कारागार से म�ुत हो गया है। आज मन�ुय के जीवन म� धम� तथा �व�ान का अ�भतु सामजं�य देखने को �मलता है। मानव एक ओर ��धावश धम� को भी मानता है, पर�त ु दसूर� ओर वह पणू�तया बौ��धक है, उसके सोचने का ढंग व�ैा�नक है। �व�ान और धम� एक दसूरे के परूक बनकर चल�गे-तभी मानवता का क�याण होगा। स�चा �व�ान भी मानव का क�याण चाहता है और स�चा धम� भी। य�द आज धम� तथा �व�ान

  • का आधार केवल मानवता हो तो �व�व म� शां�त, एकता, �ेम, भाईचारा तथा सौहाद� का सा�ा�य हो सकता है। राजनी�त के �खलाड़ी भी चनुाव� म� खलुकर सां�दा�यकता के आधार पर वोट माँगते ह�। कुछ राजन�ैतक दल� का आधार ह� सां�दा�यक है। अत: आज जातीय तथा धा�म�क दोन� ह� �कार क� सां�दा�यकता को समलू न�ट करने क� �बल आव�यकता है। सं�ेप म� य�द आज धम� तथा �व�ान का आधार केवल मानवता हो तो �व�व म� शाि�त, एकता, �ेम, भाईचारा तथा सौहाद� का सा�ा�य हो सकता है। (ख) मानव जीवन मे खेलकूद का मह�वपणू� �थान है। जीवन तभी पणू� होता है जब उसका सवा�गीण �वकास हो। �श�ा से ब�ु�ध तथा आ�मा का �वकास होता है तो खेल� से शार��रक �वकास। का�लदास ने कहा है "शर�रमाघं खलधुम� साधनम" अथा�त सब �कार के कत��य-पालन का �थम साधन शर�र ह� है। खेल� से शर�र �व��य, सडुौल और स�ुदर बनता है। �व��य शर�र वाला �यि�त ह� भल� �कार अपने मि�त�क का �वकास कर सकता है। खेलकूद से मन को आन�द �मलता है, ब�ु�ध को ती�ता �ा�त होती है और शर�र को नवचेतना �ा�त होती है। खेल कूद दो �कार के होते ह� : 1. देशी, 2. �वदेशी। �थान क� �ि�ट से भी खेल� को दो भाग� म� बाँटा जा सकता है : 1. घर के भीतर (इनडोर) और 2. घर के बाहर (आउटडोर)। इन सबका अपना अपना �थान है। खेलकूद म� ��च क� भी बात है –�कसी को खो-खो पसंद है, तो �कसी को टे�नस। �थान और समय भी खेलकूद का �नण�य करने म� मह�वपणू� भाग लेत े ह�। देशी खेल� म� कब�डी और खो-खो बहुत ��स�ध है और ये बहुत मनोरंजक खेल भी है। उस समय �खला�ड़य� का ह� नह�ं, दश�क� का भी उ�साह देखत े ह� बनता है। �वदेशी खेल य�य�प बहुत आकष�क तथा मनोरंजक होते ह�, तथा�प वे बहुत अ�धक �यय-सा�य होते ह�। यरूोप के देश�-अमे�रका म� तथा �स म� खेल� पर बहुत �यान �दया जाता है। अब ए�शया म� भी नवजागरण के साथ खेल� पर बहुत अ�धक �यान �दया जाने लगा है। सेना म�, प�ुलस म�, रेलवे म� तथा अ�या�य काया�लय� म� उन ��या�शय� को वर�यता द� जाती है। यनूान म� कई शताि�दय� पहले ओलि�पक खेल� का स�ूपात हुआ था। ये बीच म� बदं हो गए थे, पर�तु एक �ांसीसी �खलाड़ी के �य�न से दोबारा श�ु हुए ओलि�पक म� जीतने वाले �खला�ड़य� को इ�ज़त, घन व �यवसाय �ा�त होता है।

  • खेल� से न केवल शर�र �व�थ होता है, अ�पतु इससे सहयोग क� भावना का भी �वकास होता है। (ग) 'प�ुतक� ' हमारे जीवन क� म�ूयवान धरोहर ह� जो हम� जीवन पर चलने क� �दशा �दान करती ह�। यह एक अ�छे �म� क� भाँ�त सदा हमारे साथ रहकर हमारा माग�दश�न करती ह�। इसके �बना एक मन�ुय कभी �श��त नह�ं बन सकता। इसका साथ हमारे जीवन म� बचपन से ह� आरंभ हो जाता है और यवुाव�था तक बना रहता है। हम जब तक चाह� इसे अपना साथी बनए रख सकते ह�। ये �न�वाथ� भाव से हमारे साथ रहकर हमारे �ान म� व�ृ�ध करती रहती है। मझुे भी प�ुतक� से बहुत �यार है। म�ने अपने जीवनकाल म� अन�गनत प�ुतक� पढ़� ह�। पर�तु िजस प�ुतक ने मझुे सवा��धक �भा�वत �कया वह है, कबीर �ंथावल�। इस प�ुतक को म�ने अपनी एम.ए के �थम स� म� पढ़ा था। जब इस प�ुतक को म�ने सव��थम पढ़ना आरंभ �कया तो मेरे �लए इसका कोई खास मह�व नह�ं था। मेरे �लए यह मजबरू� म� पढ़ने जसैा था। पर�तु धीरे-धीरे म�ने इसको पढ़ना आरंभ �कया। म�ने इसम� जीवन के स�य को बड़े समीप से महससू �कया। �भु से �ेम का इतना खबूसरूत वण�न �मलता है िजसका शायद ह� कह�ं वण�न हो। वे भगवान को म�ूत �य� या जगंल� म� नह�ं तलाशते बि�क भगवान को अपने �दय म� तलाशते ह�। उनका भगवान घट-घट या�न म�ंदर� म� �नवास नह�ं करता। वे संसार के ��येक �दय म� �नवास करते ह�। उनके इस �ंथ म� उस समय क� सामािजक �यव�था का भी �च�ण �मलता है जो आज भी �ासं�गक है। कबीर काल�न समाज म� चार� तरफ छुआछूत, पजूा-�व�ध, नमाज़, �त आ�द आड�बर �या�त थे िजनका उ�ह�ने �वरोध �कया। �हदं-ुमिु�लम के बीच म� द�वार काफ� ऊँची थी। उस समय �हदंू जनता पर मिु�लम आतंक का कहर बना हुआ था। उ�ह�ने अपने उपदेश� के मा�यम से उनके बीच क� द�ूरय� को घटाने क� को�शश क�। इससे दोन� स�ंदाय� के पर�पर �मलन म� स�ुवधा हुई। कबीर ने अपने �ंथ के मा�यम से लोग� म� अ�हसंा, स�य, सदाचार आ�द गुण� क� मह�ा बताते हुए उ�ह� आ�मसात करने क� सलाह द� िजससे मन�ुय एक साि�वक जीवन यापन कर सके। उ�ह�ने समाज म� �या�त म�ूत� पजूा, नमाज़ व रोज़े का ख�ड ��या। उनके अनसुार भगवान को �ा�त करने के ये साधन सह� नह�ं ह�। वह कहते ह� य�द प�थर क� पजूा कर आप भगवान को �ा�त कर लेते तो आज इस ससंार म� सबको ई�वर �ा�त हो जात।े मि�जद म� खदुा-खदुा �च�लाकर खदुा �मल जाता है तो शायद सभी ऊँची-ऊँची मीनार� पर जाकर �च�लात।े अपनी बात को �स�ध करते हुए उ�ह�ने कहा है –

  • पाहन पजेू ह�र �मल�, तो म� पजूू ं पहार। तात े यह चाक� भल�, पीस खाए संसार। अथा�त ् य�द प�थर को पजूकर मझुे भगवान �मलते तो म� पहाड़ को पजूता। ले�कन उस प�थर से बनी वो च�क� अ�छ� है िजसके चलने से भखेू पेट भरत े ह�। कबीर �वयं पढ़े �लखे नह�ं थे पर�तु उनके दोह�, सा�खय� म� �ान क� इतनी गहर� अ�भ�यि�त देखने को �मलती है िजतना �ान �कसी �ानी के पास नह�ं �मलता। उनक� भाषा सरल व सम�त भाषाओ ं का �म��त �प है िजससे यह जन-जन क� भाषा बन गई। उनके �ंथ क� इ�ह�ं ख�ूबय� ने इसे मेरा ��य �ंथ (प�ुतक) बना �दया। �व�व म� भी कबीर जी के गुण� के कारण उनके �ंथ को स�मान �ा�त हुआ है। अपनी इस �े�ठता के कारण ह� यह भारतीय सा�ह�य क� अम�ूय धरोहर है।

    13. �दनांक : .............. सेवा म�, �धानाचाय� जी, के���य �व�यालय, गोल मा�क� ट, नई �द�ल�। �वषय : क�ा म� बढ़ती अनशुासनह�नता को दशा�ने हेत ु प�। �ीमान जी , स�वनय �नवेदन यह है �क म� हमार� क�ा म� बढ़ रह� अनशुासनह�नता क� ओर आपका �यान आक�ष�त करवाना चाहता हँू। हमार� क�ा म� पहले जो मॉनीटर �नय�ुत �कया गया था , वह बहुत ह� िज़�मेदार छा� था। वह क�ा म� �वयं ह� अनशुा�सत �यवहार करता था। उसे देखकर सभी छा� भी अनशुा�सत रहा करत े थे। उसके जाने के बाद हमार� क�ा का �व�प ह� बदल गया है। िजस छा� को नया मॉनीटर �नय�ुत �कया गया है , वह �वयं ह� अनशुासनह�न है। �कसी भी काम को समय पर नह�ं करता है। �वयं ऊँची - ऊँची आवाज़� म� बोलता है। क�ा म� जब देखोखाना खाने लग जाता है। उसक� देखा - देखी अ�य छा� भी उसी तरह का �यवहार करने लगे ह�। इस तरह छा� पढ़ते - पढ़ते भी चपुके - चपुके खाते हुए �दखाई दे जाते ह�। अ�यापक� के जाने के बाद छा�

  • क�ा म� बोलनेऔर लड़ने लग जाते ह�। आस - पास क� क�ा के छा�� को इससे खासी परेशानी होती है।मॉनीटर उ�ह� रोकने के �थान पर �वय ं बात� करने म� �य�त रहता है। अत : आपसे �नवेदन है �क आप इस �वषय म� आव�यक कदम उठाएँ और हमार� क�ा म� बढ़ रह� इस अनशुासनह�नता पर रोक लगाएँ। ध�यवाद , आपका आ�ाकार� �श�य , �वनय क�ा : ..............

    अथवा

    पता: ............. �दनांक: ............. ��य �वकास, बहुत �यार! हमारे �म� गो�वदं से त�ुहारा पर��ा प�रणाम जानकर बहुत हैरानी हुई �क तमु इस वष� अपनी क�ा म� अन�ुीण� हो गए हो। �म� दखुी होने क� आव�यकता नह�ं है। �व�यालय म� तमु सभी अ�यापक� के ��य हुआ करते थे। मझुे अ�छ� तरह से पता है, तमुने रात-रात जागकर अपनी पढ़ाई क� है। तमुने वे सभी �यास �कए ह� जो एक �व�याथ� को करने चा�हए। त�ुहारे इन �यास� का म� सा�य हँू। तमुने �पछल� सभी क�ाओं म� �थम �थान �ा�त �कया है जो त�ुहार� ब�ु�धमता का �माण देते ह�। त�ुहारे पर��ा प�रणाम के �वषय म� सनुकर तो �व�वास ह� नह�ं होता �क यह त�ुहारा प�रणाम है। �म� अ�धक दखुी होने क� आव�यकता नह�ं है। मेर� तमुको यह� सलाह है �क तमु अगल� पर��ा के �लए अभी से प�र�म करने म� जटु जाओ। भगवान ने चाहा तो त�ुह� सफलता अव�य �मलेगी। असफलता हम� एक सबक देती ह�। इससे सबक लेकर अपनी क�मय� को दरू करने का �यास करना चा�हए। देखना अगल� बार तमु �फर से �थम �थान �ा�त करोगे। मेर�

  • शभुकामनाएँ सदैव त�ुहारे साथ ह�। आशा करता हँू �क तमु �वलाप करना छोड़कर अपनी पढ़ाई म� लग गए होग�। सबको मेरा �णाम कहना। त�ुहारा �म�, �वनय 14.